सोमवार, 24 अगस्त 2020

अरुणेश की डायरी-1

अब तुम चले गए हो लेकिन मेरा दिल नहीं मानता।फिर भी मैं तुम्हें कहाँ कहाँ नहीं ढूंढ़ता हूँ? आज भी मैं हर रोज की तरह व्हाट्सएप खोलकर बैठ जाता हूँ।सिर्फ ये देखने केलिए की तुम मैसेज कर रही हो कि नहीं।कभी स्टेटस चेक करता हूँ तो कभी मैसेज देखता हूँ।पर अब तो स्टेटस भी देख नहीं पाता हूँ क्योंकि तुमने तो मेरा नंबर डिलीट कर रखी हो।दिन में न जाने कितनी बार सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही व्हाट्सएप  खोलता हूँ।पर तुम तो अब ऑनलाइन सजा देने से कोई कसर नहीं छोड़ रही हो।कितनी बार मैंने तुम्हें ऑनलाइन देख कर आंशू बहाए है।कितनी बार कहा है  तुम्हें मुझे तुम्हारी आदत हो गई है।फिर वही गलती।कितनी बार कोशिश की मैंने तेरी ख़बर लेने की पर मिली नहीं।कितनी बार खुद को सजा दी होगी याद भी नहीं मुझे।पर मेरी इतनी बड़ी गलती थी क्या जो माँफ  नहीं की जा सकती थी?

माना कि नाराज हो तुम मुझ से, तो क्या कभी मेरे बारे में सोचना है कि कोई जी रहा था खुद को मार कर?



अब तो शर्म भी आने लगी है अपनी चाहत पर।इश्क़ हुआ भी तो किससे जो मतलब केलिए दिल की जमीं पर आशियाना बना बैठा।

अब तो मैं भी सोचता हूँ कि खुद को बदल लूँ, पर मेरा दिल नहीं मानता है।लेकिन याद रखना जिस दिन मै बदलूंगा तुम तरस जाओगे मुझे पहले जैसे देखने के लिए।तुम मुझे खोज नहीं पाओगे इस जहांन में तो क्या अगले जहांन में भी तुम को मिलूंगा नहीं मै। 

कुछ यादें दिल में रहती है, कुछ तो बंद अलमारी में।डर भी रहता है कहीं वो आजाद न हो जाए और मेरा जीना हराम न कर दें।

आंशू तो अपने आप ही गिर जाते हैं।समझ नहीं आती है,फिर भी तेरी फ़ोटो को खुद से छिपा कर क्यों रखता हूँ? सच बात तो ये है ना मेरा दिल तुम से दूर होना चाहता ना ही मैं तुमसे खुद को दूर कर पा रहा हूँ।

 अरुणेश ✍️