गुरुवार, 13 मई 2021

नकारात्मकता के माहौल में सकारात्मक कैसे रहें

 अब कुछ मीडिया संस्थान एवं सरकारें द्वारा एक नया ट्रेंड चलाया जा रहा है कि सकारात्मक रहो,खुश रहो।वो भी तक जब आपके आस पड़ोस में चीख-पुकार की शोर सुनाई दे रही हो।आखिर ये कौन लोग हैं जो हमारे समाज को अलग करने पर तुले हैं? यह वही लोग हैं जो कल तक सरकार के हर मुद्दे पर लिपा-पोती करके सरकार की नाकामियों को छुपाने का प्रयास करते रहे हैं।कुछ मुद्दे से भटकाने में लगे हैं तो कुछ समाजिक अलगाव पैदा करने में।आज वही लोग हमें सकारात्मक रहने का ज्ञान बांट रहे हैं।चलिए मान लेते हैं कि हम सकारात्मक रह लेंगे।फिर सवाल आता है कि सकारात्मक रहें तो कैसे रहें? जब देश में लाशें सड़ रही हैं,  दवाई नहीं मिल रही है, ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है,अस्पतालों में मरीजों को बेड नहीं मिल रहा है, जरूरतमंद मरीजों को रेमडीसीवर नहीं मिल रहा है,श्मशानों में जगह नहीं, लाशें जलाने केलिए लकड़ी नहीं मिल रही है तब सकारात्मक कैसे रह सकते हैं? वे लोग सकारात्मक कैसे रह सकते हैं? जिनके परिजनों की मृत्यु ऑक्सीजन,दवाई, बेड, अस्पताल, एम्बुलेंस न मिलने के कारण हुई हो,जिसने अपनी माँ को खोया हो,जिसने अपने पिता को खोया हो,जिसने अपने माता-पिता को खोया हो,जिसने अपने भाई-बेटा खोया हो,जिसने अपनी बेटी-बहन खोया हो।भला उन्हें कैसे कह सकते हैं कि तुम सकारात्मक रहो?

हाँ ये बात बिल्कुल ठीक है कि आप सकारात्मक रहें, सकारात्मक सोचें। लेकिन ये ज्ञान तब बांटी जा रही है जब आपके अंदर सरकार से पूछने के लिए तमाम सवाल उधेड़ रही है।

ये वही लोग हैं जो पिछले सात सालों से माइंडवाश करते आये हैं।कभी हिंदू-मुस्लिम, कभी राष्ट्रवाद, कभी देशद्रोही, तो कभी जय श्रीराम जैसे मुद्दों पर जहर उगलकर आपको नकारात्मक बनाने का कोई कसर नहीं छोड़ा।इनका कोई काम नहीं है हमेशा जहर उगलते रहना है।चाहे वो तब थे या अब हैं।



गुरुवार, 6 मई 2021

चौरासी : सत्य व्यास

 किताब : चौरासी

लेखकः सत्य व्यास

प्रकाशकः हिंद युग्म
पृष्ठः 160
मूल्यः 150 रुपए


सत्य व्यास के द्वारा लिखी गई 'चौरासी' में ऋषि और मनु की प्रेम कहानी है।1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के निधन के पश्चात हुए दंगों का विवरण हमें इस पुस्तक में देखने को मिलता है।कैसे अपने ही पड़ोसी और जान पहचान के लोग हमारे विरुद्ध खड़े होने पर उतारू हो गए, यह देखने को मिलता है।कैसे पूरे सिख समुदाय पर नरसंहार शुरू हो गई थी? किस प्रकार किताब का नायक ऋषि हिंसक दंगो से अपने प्रेमी के परिवार को बचाता है? जबकि कि वह स्वयं दंगाई था।किरदारों की बात करें तो किरदार ज़्यादा नहीं हैं. मनु, ऋषि, छाबड़ा साहब मुख्य हैं।मनु का किरदार काफी मज़बूत है. तमाम परिस्थितियों में भी कहीं से भी कमज़ोर नहीं होता।
सत्य व्यास ने प्रेम और हिंसा यानी दोनों ध्रुवों को गजब के संतुलन में लिखा है।एक तरफ जहां प्रेम/प्रेमिका के पहले स्पर्श को दर्शाता है तो दूसरी तरफ हिंसक दंगो के सामने खड़ी मौत से रूबरू कराता है।
कुल मिलाकर इस किताब के बारे अपने शब्दों में कहूँ तो  प्रेम भी है, देश भी है, विद्रोह भी है, लाचारी भी  है, मानवता के साथ स्वार्थ भी है, राजनीति भी है।भारत देश की एक छवि भी है।जिसे लेखक ने अपनी कलम से उस खूबसूरती को पिरोया है।
किताब की भाषा की बात करें तो हमेशा की तरह नई वाली सरल हिंदी है. पढ़ने में मज़ा आता है. किताब सीधे-सीधे पढ़ी जा सकती है. एक बार में खत्म की जा सकती है।


किताब के कुछ लाइनें, जिसका जिक्र जरूरी है


“प्रेम की किस्मत में  आज भी सीढ़ियां नहीं होती, लिफ्ट नहीं होती, एस्केलेटर नहीं होते, आज भी दरिया, वो भी आग वालों से ही गुज़ारना  पड़ता  है .”

“दुनिया का समस्त ज्ञान व्यर्थ है, यदि स्त्री के मन को नहीं पढ़ पाता.“

“अफ़वाह की सबसे विनाशकारी बात यह होती है कि यह नसों में लहू की जगह नफ़रत दौड़ाती है.”

“अदला-बदली पत्रोँ की ही नहीं, पीड़ाओं की भी होती है.” “लड़की जब अपने सपनों के साथ निकलती है तो सबसे ज्यादा सुरक्षा अपने सपनों की ही करती है.” “राह भर ही नहीं, रात भर मुस्कराती रही.”



सोमवार, 3 मई 2021

तो क्या प्रधानमंत्री मोदी की हार हुई?

 बंगाल चुनाव के बाद राजनीतिक बुद्धिजीवियों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी हार गए हैं।तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हार गए हैं? दरअसल हकीकत यह है कि एक प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के पूरी झुंड को बहुत जोरदार पटखनी दी है।ममता बनर्जी ने प्रचंड जीत हासिल की है।पिछ्ली बार से ज्यादा सीटें हासिल की है।बंगाल में कोई मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं था अगर जीत होती तो मोदी जी की होती।यानि बंगाल चुनाव के मुख्य चेहरा मोदी ही थे।अब अगर हार हुई है तो हार सेहरा भी मोदी जी पर ही बांधा जाना चाहिए।अब सवाल यह है कि बंगाल चुनाव में हार का ठिठरा किस पर फूटेगा? मोदी जी हर चुनाव में प्रधानमंत्री पद भूलकर प्रचारमंत्री बन जाते हैं।मुझे लगता है इस बात केलिए उनकी  तारीफ़ भी की जानी चाहिए कि वो अपनी पार्टी के जीत केलिए सबसे ज्यादा मेहनत करने वाले प्रधानमंत्री हैं।मतलब मोदी जी हैं तो भाजपा है।पार्टी के छोटे से छोटे काम भी मोदी जी के ही कंधे पर है।पार्टी में मोदी की छवि ऐसी हो गई है कि अब मोदी जी को मुख्यमंत्री बनाने की मशीन कहे जाने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए।मोदी जी जहाँ जाते हैं उधर से जीत हासिल करके ही आते हैं लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी ने मोदी जी का जीत अभियान रोक दिया है।यह कहने में भी गुरेज नहीं होगा कि बंगाल चुनाव परिणाम के बाद मोदी जी के व्यक्तिगत छवि का नुकसान हुआ है। अब तक पार्टी एवं कार्यकत्ताओं केलिए मोदी जी किसी फरिश्ते से कम नहीं थे।लेकिन अब  देशवासियों के नजर से उतरते जा रहें हैं। इसके कई कारण हैं मेरे नजर में पहला कारण किसान आंदोलन।क्योंकि याद होगा किसान आंदोलन को भाजपा ने आतंकियों अड्डा बताया था।इसके बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी।दूसरा कारण कोरोना जैसे आपदा के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने बंगाल चुनाव केलिए  जिस तरह से अपने कर्तव्य, अपनी जिम्मेदारियों को भुला।उससे देशवासियों के नजर में और गिर गए हैं।लोगों में यह संदेश साफ तौर पर पहुंचा है कि आये दिन लोग   हजारों की संख्या में मरते जा रहे थे लेकिन मोदी चुनाव में व्यस्त थे।एक के बाद एक तारातरा रैली करते जा रहे थे।लाखों की संख्या में उनकी रैलियों में लोग पहुँच रहे थे।वो भी बिना मास्क और बिना किसी सोशल डिस्टेंस के।जो खुद कहते हैं कि जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं।दो गज-दूरी मास्क है जरूरी।जो खुद कहते हैं कि घर में रह कर ही कोरोना को हराया जा सकता है।लेकिन उन्होंने अपनी कही बात को एक बार फिर जुमला साबित कर दिया है।यह बात कहने में कही से संकोच नहीं कि जानी चाहिए देश के प्रधानमंत्री ने अपनी ही फायदे केलिए अपने ही देशवासियों को कोरोना के मुँह में झोंक दिया।लाशों की जाल बिछा दीं।इस कोरोना महामारी में जिन लोगों ने अपनों को खोया है।जिनको अस्पताल में जगह नहीं मिली।जिन्होंने ऑक्सीजन के बिना अपना प्राण त्याग दिया।जिनलोगों को दवाई नहीं मिली।जिनलोगों को शमशान में दो-दो-तीन-तीन दिन लाईन में लगानी पड़ रही थी।जिन लोगों को शमशान में लकड़ियां नहीं मिली।वो लोग तो प्रधानमंत्री की चुपड़ी - चुपड़ी बातों से मनने वाले तो नहीं हैं।

लोग अब तक प्रधानमंत्री की हर बात मानते आए हैं चाहें वो नोटबन्दी हो ,ताली-थाली बजाना हो,दिया जलाना हो,पूरे देश में ताला बंदी करनी की बात हो।

मेरा मानना है बंगाल में केवल भाजपा की हार नहीं हुई है।बल्कि देश के अभिभावक,बड़े बुजुर्ग घर के सदस्य के तौर पर इनकी छवि धूमिल हुई है।चाहे वो टैगोर वाली छवि ही क्यों न हो। स्वघोषित प्रधानसेवक की छवि भी धूमिल हुई है।