सोमवार, 26 जुलाई 2021

सोशल मीडिया : लघुकथा

 अरे चाचा ! आपके कलम में तो जादू है जादू। कविता, कहानी,शायरी ,चुटकुले सब- कुछ कितना सुंदर लिखते हैं।

आपको तो 'सोशल मीडिया' पर लिखना चाहिए ताकि  लाखों लोगों के पास आपकी लेखनी पहुँच सके।

दरअसल, पहली बार भतीजा रोहण शहर से अपने गांव चाचा से मिलने आया था।चाचा रमेश अपनी डायरी पलटते हुए रोहण से पूछा ये बताओ सोशल मीडिया क्या होता? 

चाचा सोशल मीडिया पर आप कोई भी बात विचार लिख सकते हैं ,पढ़ सकते हैं ,आप अपने पसन्द के दोस्तों को जोड़ सकते हैं,कविता, कहानी लिखकर डाल सकते हैं ताकि देश के अन्य लोग भी पढ़ सकेंगे।

बेटा रोहण अब ये कैसे लिखेंगे, कैसे डालेंगे ये सब मुझे समझ में नहीं आता है?

नहीं आता तो क्या हुआ मैं हूँ न ,मैं सिखाऊंगा ?, कुछ ही दिनों में रोहण ने चाचा को फेसबुक पर पोस्ट करना और ब्लॉग लिखना सीखा दिया।फिर रोहण ने चाचा के लिए सोशल साइट पर एकाउंट बना दिया।

अब हर रोज रमेश अपने ब्लॉग पर और फेसबुक पर कविता ,कहानी लिखता है।धीरे-धीरे लाखों लोग रमेश के वॉल पर आ गए। ढ़लती उम्र के इस पड़ाव पर चाचा रमेश को एक नई पहचान मिल गई।

शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

पडरौना से वाल्मीकिनगर की यात्रा

 


कोरोना महामारी के साथ लोगों की जिंदगी में आए बदलावों में वर्क फ्रॉम होम एक अहम हिस्सा है. वर्क फ्रॉम होम कोविड-19 से पहले भी मौजूद था, लेकिन महामारी के आने पर सोशल डिस्टैंसिंग की जरूरत की वजह से यह लोगों के लिए अनिवार्य हो गया. भारत में यह मार्च 2020 से ज्यादातर सरकारी और निजी कर्मचारी अपने दफ्तर का काम घर से ही कर रहे हैं. शुरुआत में, वर्क फ्रॉम होम को ज्यादातर लोगों ने पसंद किया.लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वर्क फ्रॉम होम सर दर्द बनता गया. क्योंकि जब हम काम नहीं कर रहे होते हैं तो घर पर समय व्यतीत करने में कभी परेशानी नहीं होती है. लेकिन जब हम काम घर से कर रहे होते हैं तो घर पर रहना परेशानी का सबब बनते जाता है. ऐसे में काम से जब भी छुट्टी मिलती है तो हम सीधे कहीं न कहीं घूमने को सोचते हैं.


हम जहाँ रहते हैं वहां से घूमने के लिए कुशीनगर जा सकते हैं. जो मेरे यहाँ से लगभग 25 km की दूरी पर है लेकिन कोरोनाकाल में सब कुछ बंद होने की वजह से वहां जाना नामुमकिन है. लेकिन मेरे यहाँ से दूरी कम होने के कारण  बिहार जाना भी ज्यादा आसान है. पडरौना से वाल्मीकि नगर जाने के लिए दो रास्ते हैं. एक तरफ से 65 km तो दूसरा 95 km. हम दोनों रास्ते से जा सकते हैं लेकिन बारिश के मौसम होने के वजह से सड़क जर्जर हो चुकी है इसलिए मैं फिलहाल 95km वाला मार्ग को चुनता हूँ.वाल्मीकि नगर जाने में तकरीबन 2 घण्टे लगते हैं.सड़क कहीं ज्यादा खराब है तो कहीं कम.अभी बारिश के समय में कहीं कहीं सड़क के ऊपर से पानी का बहाव देखने को मिलता है.अब हम बगहा पहुँचते हैं,तो देखते हैं कि बहुत जगह सड़क के ऊपर से पानी बहने लगता है.देख कर डर भी लगता है।मन ही मन सोचने लगता हूँ.क्या इस समय वाल्मीकि नगर जाना सही था या नहीं? क्या हमें यही से लौट जाना चाहिए? 

वहां से थोड़ा सा आगे बढ़ते हैं तो एक रेलवे स्टेशन आता है 'वाल्मीकि नगर रोड'. वहां से लगभग 6-7km तक सिंगल मेन रोड था जहाँ से दूसरी गाड़ी को साइड देना भी मुश्किल ही लग रहा था क्योंकि दोनों तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था. फिर मन ही मन सोचता हूँ कि अगर और आगे जाऊंगा तो कहीं और ख़राब दौर से गुजरना न पड़े।हालांकि मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाता हूँ. थोड़ी दूर जाने के बाद पता चलता है कि आगे सड़क काफी अच्छी है और दोनों तरफ जंगल.साथ ही तराई का इलाका. प्रकृति का सुंदर दृश्य देखकर मन प्रफुल्लित हो गया.कुछ दूर चलने के बाद वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से संबंधित सूचना बोर्ड दिखायी देने लगे थे।जंगली जानवरों से संबंधित सूचनाएं मिलने लगी थीं।


वाल्मीकि नगर :


 वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी चंपारण में शिवालिक पर्वत श्रेणी के बाहरी सीमा में स्थित है।यह राष्ट्रीय उद्यान मुख्य रूप से लुप्तप्राय प्राणियों का आवास है जैसे की चीता। यह अभयारण्य पूरी तरह से हरियाली से आच्छादित है।

900 गज में फैला वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1990 में हुई थी। यह पार्क उत्तर में नेपाल के रॉयल चितवन नेशनल पार्क और पश्चिम में हिमालय पर्वत की गंडक नदी से घिरा हुआ है।यहां पर आप बाघ, स्‍लॉथ बीयर, भेडिए, हिरण, सीरो, चीते, अजगर, पीफोल, चीतल, सांभर, नील गाय, हाइना, भारतीय सीवेट, जंगली बिल्लियां, हॉग डीयर, जंगली कुत्ते, एक सींग वाले राइनोसिरोस तथा भारतीय भैंसे कभी कभार चितवन से चलकर वाल्‍मीकि नगर में आ जाते हैं। इस उद्यान में आप चीतल, काला हिरण, फिशिंग कैट्स, तेंदुए आदि भी देख सकते हैं।


हालांकि कोरोना के वजह से जंगल तो बंद है।अंदर घूमने की अनुमति नहीं मिलती है।फिर यहां से लगभग ढाई किलोमीटर पैदल चलने के बाद जटाशंकर मंदिर पहुँचते हैं,वहां घूमने के बाद हम वापस चले जाते हैं।क्योंकि गर्मी बहुत ज्यादा थी और साथ में छोटी बच्ची भी थी जो रोने लगती  है।तब हम सभी वही पर खाना खाते हैं और वापस चले आते हैं।खाना घर से ही लाये थे क्योंकि कोरोना के वजह से बाहर का खाना खाना सुरक्षित नहीं है।हम सभी कोरोना गाइडलाइंस को फॉलो करते हुए घूम रहे थे लेकिन यहां हमें कोई नहीं मिला जो फॉलो कर रहे हों सिर्फ हमारे सिवा।



वाल्मीकि नगर टूरिज्म के हिसाब से बहुत अच्छा जगह है. लेकिन उतना विकास नहीं हो सका है जितना होना चाहिए था.इसे बिहार का कश्मीर भी कहा जाता है.इस समय नदी में पानी बहुत ज्यादा थी,पानी का बहाव ज्यादा तेज थी. नदी के उस पार नेपाल दिख रही थी.रास्ता भी दिख रही थी लेकिन रास्ता बंद होने की वजह से वहां नहीं जा सका.