बदहाल शिक्षा व्यवस्था
वर्तमान में बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल किसी से छिपी नहीं है।चाहे स्कूली शिक्षा हो या उच्च शिक्षा,सबकी दशा एक हो चुकी है।एक समय था जब बिहार शिक्षा के क्षेत्र में कीर्तिमान हासिल किया हुआ था।यहां के ज्ञान से पूरा विश्व आलोकित हुआ करता था। नालंदा ,विक्रमशिला जैसे विख्यात शिक्षण संस्थान में पूरे विश्व के लोग शिक्षा केलिए बिहार आते थे।भारत के लिए गौरव हुआ करता था।
आज वही बिहार की स्तिथि इतनी खराब हो जायेगी ये किसने सोचा था? राज्य के बदहाल शिक्षा व्यवस्था को इन आंकड़ो से समझ सकते हैं।वर्ष 2009 में लभगभ 27 लाख विद्यार्थियों ने पहली कक्षा में दाखिला लिया था,लेकिन वर्ष 2018 में करीब 18 लाख विद्यार्थियों ने बिहार बोर्ड के दशवीं परीक्षा में भाग लिया।मतलब साफ है कि पहली से दशवीं ,आते-आते करीब 9 लाख बच्चे सरकारी स्कूल से बाहर हो गए।मौजूदा वक्त में क्या हालात हैं इस आंकड़ो से समझ सकते हैं?
एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के शिक्षा विभाग ने 2019 में वैसे स्कूलों को बंद करने का निर्देश दिया था जहाँ 20 से कम छात्र होंगे।इसमें बिहार के 13 ऐसे विद्यालय मिले जहाँ एक भी छात्र का नामांकन नहीं हुआ था जबकि 171 ऐसे स्कूल थे जहाँ पर 20 से कम छात्रों का नामांकन हुआ था।इसी प्रकार 21 से 30 छात्रों की संख्या वाली स्कूलों की संख्या 336 तथा 30 से 39 छात्रों की वाली स्कूलों की संख्या 620 है।एक रिपोर्ट में तो यह भी कहा गया कि पहली और दूसरी कक्षा में बच्चों की संख्या करीब 20 फीसदी कम हो जा रही आठवी कक्षा के तुलना में।मतलब कहा जा सकता है कि हर वर्ष नामांकन दर कम हो रही है तथा छात्रों को बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की संख्या ज्यादा हो रही।इसकी एक स्तिथि साफ-साफ नजर आ रही है कि बच्चे सरकारी लाभ लेने केलिए सरकारी स्कूलों में नामांकन तो लेते हैं लेकिन अच्छी शिक्षा के केलिए पब्लिक स्कूलों में दाखिला लेकर पढ़ाई कर रहें।इसके तमाम कारण हो सकते हैं।तकरीबन 95 फीसदी स्कूलों में छात्रों के तुलना में शिक्षकों की तदाद बहुत कम है।करीब 40 फीसदी स्कूलों में शौचालय तक नहीं है और जहाँ है भी वहाँ पर बच्चे जाते नहीं है तथा कुछ ऐसे जगह है जहाँ शौचालय तो बन चुकी है लेकिन आज तक चालू नहीं किया जा सका।अगर हम पुस्तकालयों की बात करें तो करीब 35-40 फीसदी विद्यालय ऐसे हैं जहां पुस्तकालय नहीं है।
ऐसा नहीं है कि सरकारें नहीं चाहती है कि बच्चे स्कूल न आये।बच्चों के लिए 'मिड डे मील' की व्यवस्था की गई।ताकि बच्चे स्कूल में समय से आए और प्रतिदिन आए।सरकार 'मिड डे मिल' की व्यवस्था तो कराई लेकिन बच्चे केलिए खाने की व्यवस्था नहीं करा पाई।बच्चे या तो बाहर बैठकर खाते हैं या अपने कक्षा में।ज्यादातर विद्यालयों में तो रसोई नहीं है।इन सबके बावजूद आये दिन घोटालों के चलते सवालों के घेरे में रहता है 'मिड डे मिल' योजना।
केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत हजारों करोड़ रुपये दिए जाते हैं।लेकिन शिक्षा के लिए कितने पैसे खर्च किये जाते हैं इन आंकड़ो से समझ सकते हैं।यहाँ तक बच्चों में शारिरिक और मानसिक विकास केलिए भी जो पैसे आते है वो भी सिर्फ खानापूर्ति केलिए की जाती है।तमाम ऐसे योजनाएं हैं जो फाइलों के साथ दब के रह जाती है।
सन 2008-09 में बिहार में इंटरमीडिएट की पढ़ाई केलिए उच्च विद्यालयों को उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में परिवर्तन करने की योजना बनाई गई।लेकिन इसे भी बिना किसी तैयारी के लागू किया गया।व्यवस्था के नाम पर कुछ नहीं किया गया।बिना किसी शिक्षक के इंटरमीडिएट में नामांकन शुरू कर दिया गया।जबकि इसके लिए पहले से विस्तृत योजना बनाना चाहिए था।सम्पूर्ण विषयों केलिए योग्य शिक्षकों की बहाली की जाती।शैक्षणिक संसाधनों की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए थी।लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया।
बिहार सरकार शिक्षा के क्षेत्रों में पूरी तरह से नाकाम रही है।गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के बजाय उनके भविष्य के साथ खेल रही है।
इसका सबसे बड़ा कारण बिहार में गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी।हमेशा बिहार में शिक्षकों का प्रदर्शन होते रहते हैं। शिक्षक अपने वेतन केलिए स्कूलों को बंद कर देते हैं जिससे पढ़ाई बाधित रहती है।लेकिन सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पाती है।
बिहार सरकार ने सन 2006 में बहुत बड़ी गलती की थी बिना किसी दक्षता परीक्षा पास किए शिक्षकों की नियुक्ति करके।नियोजन के अधार पर शिक्षकों की बहाली की गई।जिसमें सिर्फ डिग्री की महत्ता दी गयी थी।ऐसे ऐसे शिक्षकों के नियुक्ति के बाद बिहार में शिक्षा का स्तर भी कम हुआ।
ऐसे देखा जाए तो बिहार में निजी संस्थानों की स्थिति काफी अच्छी है लेकिन सरकारी संस्थाओं की स्थिति उतनी ही खराब।स्पष्ट है कि सरकार सरकारी संस्थानों को समाप्त कर निजीकरण करना चाह रही है।निजी संस्थानों के द्वारा कैसे शिक्षा का व्यापार किया जा रहा है ये किसी से छिपी नहीं है।बिहार में शिक्षा व्यवस्था काफ़ी चिंतनीय विषय होगया है।सरकार को शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत है।
अरुणेश कुमार