सोमवार, 2 दिसंबर 2019

JNU की स्थिति

एक बार फिर JNU ख़बरो में है, JNU का छात्र खबरो में हैं,छात्रों ने संसद तक का मार्च निकाला।पुलिस ने रोका भी, उनपर लाठीचार्य भी की,कई छात्र घायल भी हुए।जाहिर सी बात है ये बहुत बड़ी खबर  है । आखिर ये छात्र  क्यों गए? ये सवाल भी जायज है।लेकिन ये आंदोलन एक बड़ा सवाल उठाता है।, यह सवाल सिर्फ मेस फ़ी का नहीं है न होस्टल फी का है।देश के भविष्य से जुड़े हुए बहुत बड़े सवाल का आने से पहले थोड़ा छोटे सवाल पर प्रकाश डाल दें क्योंकि JNU की जब भी  चर्चा होती है तो तमाम तरह की आवाजे उठाई जाती है, कभी टुकड़े-टुकड़े गैंग तो कभी देश तेरे टुकड़े होंगे।
    जिस तरह की बातें इस समय हो रही है ये तो बिल्कुल उन घटिया मानसिकताओं को बतलाता है जो शिक्षा मुद्दा को भी राजनीतिक से जोड़ रहे हैं।


JNU आप मानो या न मानो उससे सहमत हो या न हो, उनके प्रोफेसर से भी असहमत हो सकते हैं या फिर उनकी विचारधारा से भी।लेकिन ये भी सच है कि JNU देश की उन  universities में से है जिसके बारे में विदेशों में भी चर्चा होती है।
हाल ही में Novel पुरस्कार से सम्मानित डॉ अभिजीत बनर्जी भी JNU से हैं और देश के तत्कालीन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण भी JNU से ही हैं।
ये भी सच है UGC की रैंकिंग में A++ लगभग पिछले 5 सालों से JNU  को ही मिल रहा है और आगे भी मिलेगा फिर भी ये कहना कि इस यूनिवर्सिटी में पढ़ाई नहीं होती।ये सोचना ही अनपढ़ता का लक्षण लगता है।आज के समय में तो दुर्भाग्य है कुछ नेताओं की,कुछ टीवी चैनलों की जो JNU को बदनाम कर रहे हैं।आज इस तरह से बदनाम होता रहेगा तो आज JNU target पर है कल कोई और संस्थान होगा।
हाल की घटना BHU से है भी आ रहा है।BHU में एक संस्कृत के प्रोफेसर नियुक्त हुए हैं वो संस्कृत से ही BA, MA और PhD किये हुए हैं NET और JRF भी किये हैं।लेकिन वहाँ के हिंदुत्व वादी छात्र उनसे पढ़ना नहीं चाह रहे हैं उनका विरोध कर रहे हैं। उनकी गलती सिर्फ ये है कि उनका नाम फिरोज खान है जो एक मुस्लिम जाति से आते हैं।आखिर ऐसा क्यों? सवाल ये भी है कि ये छात्र भी पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन इनके अंदर नफरत कौन डाल रहा है?
तो सवाल सिर्फ JNU का नहीं है,सवाल सिर्फ मेस के खाने का नहीं है, तमाम तरह की चीजें पूछी जा रही है।यहाँ पर तो ₹100 में कमरा मिल जाता है तो कॉलेज फी सस्ती है कई तरह की सवाल किए जा रहे हैं।सच तो ये है कि मेस के खाने का जो चार्ज था ₹2500-3000 लेकिन अगर फी बढ़ेगी तो लगभग ₹5000-6000 तक हो सकती है। तो एक साधारण  छात्र के लिए बहुत बड़ा अमाउंट हो सकता है। कुछ लोग तो इसे जायज भी मान रहे हैं।लेकिन थोड़ा सोचना भी चाहिए कि JNU में लोग किस-किस परिस्थिति में आकर पढ़ते हैं।वैसे परिवार से भी आते हैं जिन परिवारों ने आज तक किसी को भी higher education केलिए भेजा नहीं होगा।उनलोगों के लिए तो ये बिल्कुल गंभीर सवाल है।शिक्षा ले पायेंगे या नहीं।कृप्या इससे हल्का में  न लें।सरकार तो ये भी कह रही थी कि rule चेंज किया जा चुका है लेकिन क्या किसी ने rule को पढा भी है या नहीं?क्योंकि तमाम तरह की सर्टिफिकेट देने पड़ेंगे फिर भी मुश्किल से 2-4% छात्रों को ही फी में कटौती की जा सकती है बाक़ी तो इससे बंचित ही रह सकते हैं,कुछ तो JNU भी छोड़ सकते हैं।
 सवाल यही  है कि ये  हायर एजुकेशन के cost से जुड़ा हुआ मुद्दा है ये सवाल सिर्फ JNU का नहीं है।बिट्स पिलानी, IIT, NIT जैसे कई संस्थानों में भी इस तरह के मामले उठते रहे हैं।कुछ दिन पहले मेडिकल कॉलेजों में भी फी से जुड़े मामले सामने आए थे।ये पूरे देश के शिक्षण संस्थाओं का मुद्दा हो चुका है सिर्फ JNU का नहीं।
सच तो यह है कि अगर आपको हायर एजुकेशन का मौके नहीं मिलेगा तो आप अपनी जिंदगी संवार नहीं सकते हैं औऱ अगर ये एजुकेशन पैसे के आधार पर मिलेगा तो सीधी सी बात है गरीब परिवार इससे वंचित रह सकता है।
हमारे देश का संविधान तो कहता है सबको बराबर अवसर मिलेशिक्षा में। अगर ऐसी नीति रही तो शिक्षा में सबको बराबर अवसर कैसे मिलेगी?अगर उच्च शिक्षा आपको मुफ्त न मिल सकें। औऱ ये कोई मुफ्तखोरी नहीं है, शिक्षा स्वास्थ्य देना तो सरकार की अहम जिम्मेदारी है।यानि कि परिवार की परिस्थिति चाहे जैसी भी हो ,शिक्षा देना सरकार की अहम जिम्मेदारी है ये हमारा संविधान भी कहता है।
 सच तो यह है  हमारे देश की शिक्षा और स्वास्थ्य पर दुनिया के तमाम देशों की तुलना में बहुत कम पैसा शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करती है।यहाँ तक कि अमेरिका जो विकसित देश के श्रेणी में आता है वो भी शिक्षा पर भारत से कई गुणा ज्यादा पैसा खर्च करती है ये तो ऐसे भी विकासशील देशों के श्रेणी में है।आज भी हमारे देश में  लगभग 2-3% छात्रों को ही scholarship मिलता है जबकि अमेरिका 20-25% देता है।
JNU इस तरह के बड़े सवाल को उठा रहा है यह भी सच है दुनिया में जब जब युवाओं लोगों के बड़े आंदोलन हुए है हमेशा ऐसे ही किसी छोटे मुद्दे से शुरू हुए हैं चाहे वो JP आंदोलन हो या फिर नव निर्माण आंदोलन।
नव निर्माण आंदोलन का सच भी मेस के खाने से और इसी आंदोलन से निकले हुए नेता आज हमारे देश के प्रधानमंत्री भी हैं।
            ✍️अरुणेश

रविवार, 17 नवंबर 2019

मां भारती की संतान


 हिन्दू हो या
मुसलमान
मां भारती की
संतान
अनेकता में
 एकता का हो
सम्मान
दिल में हो
प्यार
चेहरे पर हो
मुस्कान
ऐसा हो
हिंदुस्तान।
      ✍️अरुणेश कुमार गोलू

सोमवार, 8 जुलाई 2019

पानी की समस्या...

पानी की समस्या
भारत में मानसून का आगाज हो चुका है। कितने राज्यों में बारिश शुरू हो गई है तो कई राज्यों में इसका इंतजार है। हालत कुछ इस तरह के बने हुए हैं कि एक तरफ भारी बारिश और जलभराव से मुंबई के लोग परेशान हैं, तो दूसरे तरफ कई शहर बारिश को तरस रहें हैं। पर्यावरण में आए बदलाव का असर ऐसा है कि एक ही शहर के किसी क्षेत्र में अति वर्षा हो रही है तो कहीं गर्मी और सूखे जैसे हालात हो चुके हैं।इसका असर जलप्रदूषण औऱ जल संकट के रूप में दिखाई दे रहा है।हाल ही में केंद्र सरकार के एक रिपोर्ट के मुताबिक 70 फ़ीसदी पानी प्रदूषित हो चुकी है।देश जलसंकट के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है।देश की लगभग आधी आबादी पानी की कमी से जूझ रही है।हर साल प्रदूषित पानी की वजह से लाखों लोगों की जान जा रही है।
                       देश में लगभग सभी शहरों में कई महिलाएं पानी केलिए घण्टों लाइन में खड़ी होती है या फिर टैंकर से पानी भरकर घर लाती है।तो कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां कई किलोमीटर चलकर पीने का पानी भरने जाना पड़ता है।

नीति आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक, हर चार में से तीसरा व्यक्ति गंदा पानी पीने को मजबूर है।हमारे देश मे गन्दे पानी को साफ न कर पाना भी एक बहुत बड़ी समस्या है।एक सर्वे के मुताबिक गंदे पानी का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा साफ किया जाता है और बाकी नदी,नाले या फिर तालाब में गिरा दिया जाता है।इससे भू-जल भी प्रदूषित होता है।इसी रिपोर्ट के मुताबिक नदियों का पानी प्रदूषित है, साथ ही भू-जल और नल का पानी भी गंदा हो चुका है।इसकी बड़ी वजह कचरे का उचित व्यवस्था नहीं हो पाई है।जिसके चलते भूमि के अंदर का जल प्रदूषित और जहरीला होगया है।
हाल ही में नीति आयोग के द्वारा यह भी दावा किया गया है कि अगर भारत मे पानी की समस्या को सुलझा लिया गया तो देश की जीडीपी में लगभग 5-6 फ़ीसदी फायदे का अनुमान है।
  भारत की सबसे और पवित्र कही जाने वाली गंगा नदी दुनिया की सबसे गंदी नदियों में से एक है।साथ ही यमुना,साबरमती ,गोदावरी नदी की हालत उससे कहीं कम नहीं है।कई नदियाँ तो सुख चुकी है।जिससे इसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है।
      यदि हमें जल प्रदूषण को कम करना है और पीने के पानी की उपलब्धता बढ़ानी है तो जिन देशों में प्रबंधन अच्छा है,उनसे सीख और मदद लेने की आवश्यकता है।जल प्रबंधन के मामले में इजरायल के पास सबसे अच्छी तकनीक है उससे मदद लेने की आवश्यकता है।हाल ही में इजरायल के मदद से ही गंगा नदी को साफ करने की खबर भी सामने आई थी।
               
                              ✍️अरुणेश कुमार गोलू

बुधवार, 5 जून 2019

पर्यावरण

पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है, जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों ओर है, और 'आवरण' जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की कुल इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन से हुई। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएं और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। जबकि पर्यावरण के अजैविक संघटकों में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएं आती हैं, जैसे: पर्वत, चट्टानें, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि।
सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं से मिलकर बनी इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी पर निर्भर करती और संपादित होती हैं। मनुष्यों द्वारा की जाने वाली समस्त क्रियाएं पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार किसी जीव और पर्यावरण के बीच का संबंध भी होता है, जो कि अन्योन्याश्रि‍त है।
मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो भागों में बांटा जा सकता है, जिसमें पहला है प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण। यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता के अनुसार है। 
पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है।  आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की।

गुरुवार, 9 मई 2019

राजनीति और राष्ट्रवाद

मुझे ये बात बिल्कुल समझ नहीं आई कि जो अब तक के पिछले 5 चरणों के चुनाव हुए जिसमे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रैलियों में बालाकोट और राष्ट्रवाद की चर्चा की।
    अब जो चुनाव होने वाली वाली है जिसमें सिर्फ 120 सीटें बची हुई है उसमें प्रधानमंत्री कांग्रेस को चुनौती दे रहे हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विरासत पर चुनाव हो जाए।
मतलब की जो प्रधानमंत्री एक आतंकी हमले में आज से लगभग 3 दशक पहले मारे गए।
  एक ऐसा प्रधानमंत्री जो अपने नाकामियों को छुपाने केलिए कभी सैनिकों के शहादत पर सियासत करता है तो कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शहादत पर।
क्या प्रधानमंत्री को नोटबन्दी और GST पर वोट नही मांगना चाहिए? क्या रोजगार की चर्चा नहीं कर सकते हैं?
इसका मतलब भी साफ हो चुका है कि वो चुनाव के नतीजों से डर रहे हैं इसलिए तो अपने एक interview में times now के एक पत्रकार को चुनौती दे रहे हैं कि 'अगर हिम्मत है तो मेरे इस interview को आप हिंदी और इंग्लिश में tv पर दिखाए।'
 प्रधानमंत्री जी आपको ये समझना चाहिए कि इस वक़्त देश का पूरा मीडिया आपकी चर्चा कर रही है तो फिर चुनौती है या आपके अंदर का डर।

गुरुवार, 2 मई 2019

मेरी कविता

मेरी खुशियां भी तुम हो
मेरी मुस्कुराहट भी तुम हो
मेरी चाहत भी तुम हो
मेरी यादें भी तुम हो
मेरी दुल्हन भी तुम हो
मेरी दोस्त भी तुम हो
मेरी कविता भी तुम हो
मेरी अस्मिता भी तुम हो
मेरी जिन्दगी भी तुम हो
मेरी बंदगी भी तुम हो
मेरी तन्हाई भी तुम हो
मेरी परछाई भी तुम हो

- अरुणेश कुमार गोलू

तुम्हारी याद बहुत आयेगी

तुम्हारी याद
बहुत आएगी
जब तुम चली जाओगी
आज भी आती हो
कल भी आती थी
कल भी आएगी
जब तुम चली जाओगी
ओ पल भी था
ये पल भी है
ओ पल भी आएगा
याद तुम्हें आयेंगे
जब तुम चली जाओगी
ओ दिसंबर का महीना
ओ सावन का महीना
जो वक्त बिताया करती थी
ओ बारिश का मौसम
ओ सावन की बूंदें
तुम्हारी याद
बहुत आएगी
जब तुम चली जाओगी
तुम भी दीवानी थी
मैं भी दीवाना था
उस वक्त भी रहूंगा
जब तुम चली जाओगी
तुम्हारी याद बहुत आएगी
जब तुम चली जाओगी
ओ साइकिल की घंटी
जब तुम बजाया करती थी
ओ खत जो तुम लिखा करती थी
ओ वक्त जो तुम संजोया करती थी
पल-पल याद आएगी
जब तुम चली जाओगी
ओ गीत
जो कभी गाया करती थी
ओ कविता
जो कभी सुनाया करती थी
ये यादें बस यादें रह जाएंगे
जब तुम चली जाओगी
तुम्हारी याद बहुत आएगी
जब तुम चली जायेगी।

- अरूणेश कुमार गोलू

मिट्टी

न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
धूप में तपती
आंधी में उड़ती
रात में गिरती
बारिश में पिघलती।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
फसल उगती मिट्टी में
कटाई भी मिट्टी में
फिर भी उर्वरता
होती मिट्टी में।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
मूर्ति भी मिट्टी में
खिलौने भी मिट्टी में
घर भी मिट्टी में।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
जीवन का आधार मिट्टी में
मिलेगा हर कोई मिट्टी में
फिर भी मिट्टी
मिट्टी ही रहती।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।

- अरूणेश कुमार गोलू

बुधवार, 27 मार्च 2019

हमारी हिंदी

आपनी भाषा
मेरी भाषा
जन-जन की भाषा
हिंदी हमारी।
मीठी बोली
प्यारी बोली
जन-जन की बोली
हिंदी हमारी।
देश की भाषा
प्रदेश की भाषा
जन-जन की भाषा
हिंदी हमारी।
देश की बोली
प्रदेश की बोली
जन-जन की बोली
हिंदी हमारी।
सिंधु-से-हिन्दू
हिन्दू-से-हिंदी
भाषा बनी
हिंदी हमारी।
शब्द-से-शब्दावली
देव-से-देवनागरी
लिपि बनी
हिंदी हमारी।
भारत की पहली
न्यूजीलैंड की चौथी
बोली बनी
हिंदी हमारी।
अपनी भाषा
मेरी भाषा
जन-जन की भाषा
हिंदी हमारी।

- अरुणेश कुमार गोलू