बुधवार, 17 मार्च 2021

जुहू चौपाटी : साधना जैन

 

जुहू चौपाटी , साधना जैन का उपन्यास है जिसकी कहानी एक फ़िल्म अभिनेत्री के इर्दगिर्द घूमती है।यह साधना जी की पहली किताब है।इनकी भाषा की पकड़ जानना हो तो इस किताब को पढ़ सकते हैं।किसी भी राईटर केलिए  सरल और सहज भाषा में लिखना बहुत मुश्किल होता है।
इस किताब में एक भूतपूर्व अभिनेत्री की कहानी है जो मर चुकी है।उस अभिनेत्री का नाम मीरा है।मीरा की अचानक मृत्यु हो जाती है।जब उसकी आत्मा खुद को मृत देखती है तो उसको बिल्कुल विश्वास नहीं होता है। "दुनिया से भागा जा सकता है, खुद से नहीं।" मीरा वहां से अचानक घबराई हुई लड़की की तरह भाग जाती है।जिस दिशा में वह जा रही थी वो रास्ता 'जुहू चौपाटी' की तरफ जाता था।जुहू चौपाटी मुंबई शहर का सबसे प्रसिद्ध तट है।मीरा भी इसी तट पर बैठकर अपने मरने की वजह खोज रही है।दरअसल उसको यह भी नहीं मालूम है कि उसकी हत्या किसने की? सब कुछ वो यही से याद करती है।शिमला वाला घर छोड़ कर दिल्ली क्यों आई थी? वहां से मुंबई क्यों गई? कैसे बॉलीवुड में अभिनेत्री बनी? क्यों उसने बॉलीवुड की बड़ी अभिनेत्री होने के बावजूद फिल्मों से काम करना छोड़ दिया? मीरा की मृत्यु कैसे और क्यों होती है? राजी,संदीप,राजीव, रीना ,शास्त्री जी और मीठी से क्या संबंध थे मीरा की।इन सब प्रश्नों का उत्तर उपन्यास पढ़ने के बाद ही मिल सकता है।


कुछ पंक्तियां जिन्होंने बहुत कुछ कह दिया उनका उल्लेख जरूरी है-
"हमारा वर्तमान हमारे अतीत का अपग्रेड वर्जन ही तो है।हम चाहें भी तो अपने ओल्डसेल्फ़ मे वापस नहीं जा सकते।जिस तरह मुँह से निकले हुए हमारे शब्द पराए हो जाते हैं, उसी तरह हमारा जिया हुआ कल हमारे आज से अजनबी होता जाता है।"


"हमारी सोच ,हमारे विचार हमारी भावनाएं, हमारी पसंद सब वक्त के साथ बदल जाते हैं।और ये बदलाव पलक झपकते ही नहीं हो जाता।ये प्रक्रिया हर सेकेंड चालू रहती है जिसका हमें पता भी नहीं चलता।और एक दिन हम पाते हैं हम वह रहे ही नहीं जो कल थे।"


"कई बार हम ऐसा कुछ कर जाते हैं जिसे करने के बाद हमें खुद हैरानी  होती है।कुछ ऐसा जो हम कब का करना छोड़ चुके होते हैं या वह हमने अपनी जिंदगी में कभी किया ही नहीं होता।फिर अचानक ऐसा कुछ घट जाता है जिसके बाद हम वह काम इस तरह से कर जाते हैं, मानो ये प्यास लगने पर पानी पीने जैसी आम बात हो।"


"जिस पल रात सुबह में बदल रही होती है उस पल को देखकर ऐसा लगता है जैसे पूरा आसमान हमसे कहना चाहता हो कि कुछ भी हमेशा के लिए नहीं रहता।हर रात की मंजिल सुबह है।हर दुःख का अंत सुख है।और सुख की भी एक निश्चित उम्र है।"


"दो लोगों के बीच की वैचारिक क्षमता का वजन जब होने वाली बातचीत के तराजू के दोनों पलड़ों में बराबर पड़ता है तभी यह तय होता है कि उनके बीच बनने वाला रिश्ता कितना गहरा होगा!दूर कितना जाता है इस बात से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता है।"


"इंसान जिंदा हो या मरा हुआ उसे किसी न किसी का साथ चाहिए।वह अकेले बचा तो रहता है मगर मानसिक तौर पर बीमार होता जाता है।
"

लिखने केलिए तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन प्रतिक्रिया की भी अपनी सीमा होती है।अंत में मैं लेखिका को बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि जिसने एक नए तरीके से कहानी को पेश की।आशा करता हूँ कि आगे भी ऐसे ही कुछ नया लिखने का कोशिश करेंगी।
पुस्तक : जुहू चौपाटी
लेखिका : साधना जैन
प्रकाशन : हिन्द युग्म
मूल्य : 150 रुपये मात्र


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