गुरुवार, 9 मई 2019

राजनीति और राष्ट्रवाद

मुझे ये बात बिल्कुल समझ नहीं आई कि जो अब तक के पिछले 5 चरणों के चुनाव हुए जिसमे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रैलियों में बालाकोट और राष्ट्रवाद की चर्चा की।
    अब जो चुनाव होने वाली वाली है जिसमें सिर्फ 120 सीटें बची हुई है उसमें प्रधानमंत्री कांग्रेस को चुनौती दे रहे हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विरासत पर चुनाव हो जाए।
मतलब की जो प्रधानमंत्री एक आतंकी हमले में आज से लगभग 3 दशक पहले मारे गए।
  एक ऐसा प्रधानमंत्री जो अपने नाकामियों को छुपाने केलिए कभी सैनिकों के शहादत पर सियासत करता है तो कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शहादत पर।
क्या प्रधानमंत्री को नोटबन्दी और GST पर वोट नही मांगना चाहिए? क्या रोजगार की चर्चा नहीं कर सकते हैं?
इसका मतलब भी साफ हो चुका है कि वो चुनाव के नतीजों से डर रहे हैं इसलिए तो अपने एक interview में times now के एक पत्रकार को चुनौती दे रहे हैं कि 'अगर हिम्मत है तो मेरे इस interview को आप हिंदी और इंग्लिश में tv पर दिखाए।'
 प्रधानमंत्री जी आपको ये समझना चाहिए कि इस वक़्त देश का पूरा मीडिया आपकी चर्चा कर रही है तो फिर चुनौती है या आपके अंदर का डर।

गुरुवार, 2 मई 2019

मेरी कविता

मेरी खुशियां भी तुम हो
मेरी मुस्कुराहट भी तुम हो
मेरी चाहत भी तुम हो
मेरी यादें भी तुम हो
मेरी दुल्हन भी तुम हो
मेरी दोस्त भी तुम हो
मेरी कविता भी तुम हो
मेरी अस्मिता भी तुम हो
मेरी जिन्दगी भी तुम हो
मेरी बंदगी भी तुम हो
मेरी तन्हाई भी तुम हो
मेरी परछाई भी तुम हो

- अरुणेश कुमार गोलू

तुम्हारी याद बहुत आयेगी

तुम्हारी याद
बहुत आएगी
जब तुम चली जाओगी
आज भी आती हो
कल भी आती थी
कल भी आएगी
जब तुम चली जाओगी
ओ पल भी था
ये पल भी है
ओ पल भी आएगा
याद तुम्हें आयेंगे
जब तुम चली जाओगी
ओ दिसंबर का महीना
ओ सावन का महीना
जो वक्त बिताया करती थी
ओ बारिश का मौसम
ओ सावन की बूंदें
तुम्हारी याद
बहुत आएगी
जब तुम चली जाओगी
तुम भी दीवानी थी
मैं भी दीवाना था
उस वक्त भी रहूंगा
जब तुम चली जाओगी
तुम्हारी याद बहुत आएगी
जब तुम चली जाओगी
ओ साइकिल की घंटी
जब तुम बजाया करती थी
ओ खत जो तुम लिखा करती थी
ओ वक्त जो तुम संजोया करती थी
पल-पल याद आएगी
जब तुम चली जाओगी
ओ गीत
जो कभी गाया करती थी
ओ कविता
जो कभी सुनाया करती थी
ये यादें बस यादें रह जाएंगे
जब तुम चली जाओगी
तुम्हारी याद बहुत आएगी
जब तुम चली जायेगी।

- अरूणेश कुमार गोलू

मिट्टी

न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
धूप में तपती
आंधी में उड़ती
रात में गिरती
बारिश में पिघलती।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
फसल उगती मिट्टी में
कटाई भी मिट्टी में
फिर भी उर्वरता
होती मिट्टी में।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
मूर्ति भी मिट्टी में
खिलौने भी मिट्टी में
घर भी मिट्टी में।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।
जीवन का आधार मिट्टी में
मिलेगा हर कोई मिट्टी में
फिर भी मिट्टी
मिट्टी ही रहती।
न जानें
कैसी है
ये मिट्टी।

- अरूणेश कुमार गोलू