डार्क हॉर्स' नीलोत्पल मृणाल का उपन्यास है जिसकी कहानी सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे छात्रों के इर्द-गिर्द घूमती है।इसकी टैग लाइन है 'एक अनकहीं दास्तां...'।
‘‘डार्क हॉर्स’ महज एक उपन्यास भर नहीं है, बल्कि छात्र जीवन की अनगिनत अनकही कहानियों का संग्रह है, जो सभी छात्रों के जीवन से ताल्लुक रखता है।खासकर वैसे छात्र जो मुखर्जीनगर में जाकर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहें होते हैं।
'डार्क हॉर्स’ का मुख्य किरदार संतोष बिहार के भागलपुर से सिविल सर्विस की तैयारी के लिए दिल्ली आता है। उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे हिंदी पट्टी के राज्यों से सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए लड़के या तो इलाहाबाद का रुख करते हैं या तो दिल्ली का। खास तौर से हिंदी माध्यम से तैयारी करने वाले लड़कों के लिए ये दो जगहें ही महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। जो थोड़े कमजोर घर से होते हैं, वे इलाहाबाद रह कर तैयारी करते हैं, और जो थोड़े साधन-संपन्न होते हैं, वे दिल्ली के मुखर्जी नगर में अपना ठीकाना बनाते हैं।
‘जेतना दिन में लोग एमए - पीएचडी करेगा, हौंक के पढ़ दिया तो ओतना दिन में तो आईएसे बन जाएगा।’ नीलोत्पल मृणाल की यह लाइन काफी अच्छी लगी ,प्रभावशाली भी।साथ ही सिविल सर्विस के तैयारी कर रहे हैं उन छात्रों के लिए है जो बिहार- यूपी से तमाम ख़्वाब लेकर दिल्ली, इलाहाबाद जाते हैं।
इस उपन्यास को पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि हम स्वयं मुखर्जीनगर के उन गलियारों में घूम रहे हैं जहाँ के हर-गली,मोहल्ला सिविल सर्विसेज के छात्रों से भरा पड़ा रहता है।जहां सबके जुबान पर भोजपुरिया टोन के माहौल देखने को मिलता है।यह भी नजर आता है कि छात्र किस तरह से खुद को माहौल के अनुसार समझौता कर लेता है।
इस किताब में सिर्फ सिविल सर्विस के तैयारी ही छात्रों की कहानी ही नहीं, बल्कि उनके गांव - शहर,संस्कृति, भाषा ,रहन-सहन, खानपान से लेकर उनके विचारों को दिखाने का प्रयास किया है। 'नीलोत्पल मृणाल' ने।
दिल्ली के मुखर्जीनगर से लेकर यूपी-बिहार गांवो का सफर करना चाहते या सिविल सर्विस के तैयारी कर रहें छात्रों के जीवंत घटनाओं से परिचय होना चाहते हैं तो 'डार्क हॉर्स' पढ़ सकते हैं।
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