गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

कांग्रेस का संकट

 देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लगातार चर्चा का विषय बनते जा रहा है।पहले बताया गया था कि मई में चुनाव होगा परंतु अब जून में होगी।भले ही अब जून में  होगा लेकिन क्या पता जून में होगा भी या नहीं ये कहना मुश्किल है।क्योंकि जिस प्रकार से नेतृत्व कांग्रेस कर रही है ये विचारणीय तो है ही।लगातार कांग्रेस कमजोर होती नजर आ रही है।हाल ही में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद राहुल गांधी ने यह कहते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था कि अब गांधी परिवार से बाहर से कोई अध्यक्ष पद केलिए चयनित होगा।लेकिन आखिर में फिर से सोनिया गांधी को बना दिया गया।उसके बाद भी माना जा रहा था कि यह चुनाव कुछ समय केलिए ही की गई है,पर अब एक साल से ज्यादा हो चुकी है लेकिन अब तक कुछ हुआ नहीं।यह सत्य भी है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद पर न रहते हुए भी पार्टी का फैसला लेते रहें हैं।जब राहुल गांधी के निशाने पर सीधा प्रधानमंत्री मोदी होते हैं तब कांग्रेस अपने ही नेता अपने ही से लड़ रहे होते हैं।चाहे वो मध्यप्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया हो या फिर राजस्थान में गहलोत और पायलट हों।  पिछले कुछ सालों में देख गया है कि पार्टी अपने किसी एक स्टैंड पर खड़ी नहीं होती है।हाल ही में  कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल समेत कई नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर चुके हैं।


मेरा मानना है कि कांग्रेस मतलब गांधी परिवार पार्टी के ही कुछ चाटुकारों से घिर गया है।ये चाटूकार अपने स्वार्थ केलिए गाँधी परिवार की चमचागिरी करते रहते हैं।यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि पार्टी के सदस्यगण खुद फैसला लेने के बजाए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर छोड़ देते हैं।तब यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सोनिया गांधी अपनी  पार्टी के अंदरूनी मामला को सुलझा पायेगी? यह कहना भी मुश्किल है कि कब कांग्रेस नेतृत्व अपने को मजबूत कर पाएगी और अध्यक्ष पद का चुनाव कब तक करेगी ?

समस्या यह नहीं है कि हर फैसला सोनिया गांधी के नाम पर टाला जा रहा है बल्कि यह है कि उन मुद्दों पर कहीं कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा है।

कांग्रेस केलिए बेहतर होगा कि नेतृत्व को मजबूत करें और यही भी समझे कि इन सबका जिम्मेदार वह स्वयं खुद है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें