गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

हिंसक होना देशहित व समाज हित कतई नहीं

 युवाओं को हिंसक गतिविधियों में शामिल होना बड़ा चिंतनीय विषय है।हाल ही में बिहार सरकार ने एक नई दिशा-निर्देश जारी की है कि हिंसक-गतिविधि में शामिल युवाओं को अनुबंध के आधार पर सरकारी नौकरी में शामिल नहीं की जायेगी।सरकार चाहती है कि हमारे युवा हिंसक न हो।बेशक हिंसक होना देशहित व समाजहित में कतई नहीं है।लेकिन सरकार के इस नियमावली में एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि अगर युवा जायज मांग केलिए आंदोलन-प्रदर्शन कर रहें हो और कुछ असामाजिक तत्वों के लोग आंदोलन को हिंसक रूप में परिवर्तित कर दें तब क्या होगा? ज्यादातर देखा गया है कि हिंसक आंदोलन में निर्दोष लोग ही फंस जाते हैं।पुलिस की क्या भूमिका रहती है इसे कहने की जरूरत नहीं है?राजनीतिक दलों की क्या भूमिका रहती है यह भी कहने की जरूरत नहीं है?

गंभीर आपराधिक रूप से लिपटे लोगों के लिए तो पहले से ही कानून थे लेकिन अब हिंसा में शामिल लोगों केलिए यह प्रावधान लाई जा रही है।ताकि युवा इस डर से सरकार के विरोध में कोई आंदोलन न करें।
लेकिन ये प्रावधान तो सिर्फ युवाओं के लिए है तो क्या सरकार उन नेताओं पर अंकुश लगाएगी जो किसी राजनीतिक आंदोलन को हिंसक रूप देते हैं? क्या उन नेताओं के लिए चुनाव न लड़ने का कोई प्रावधान ला सकती है? 



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