बुधवार, 13 जुलाई 2022

बिहार में बदहाल है शिक्षा व्यवस्था

 


आज के समय में जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था बिहार में है, वह किसी हद तक संतोषजनक नहीं हैं। किसी भी राज्य के विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता है।वहीं बिहार सरकार हमेशा शिक्षा में सुधार के दावे करती नजर आती है।लेकिन हकीकत क्या है ये भी किसी से छुपी नहीं है।विद्यालय,महाविद्यालय से लेकर यूनिवर्सिटी तक बदहाल स्थिति में है।आज एक बार फिर बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा हो चुका है।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार में एक लड़का यह कहते हुए नजर आ रहा है कि 'सर मैं बीए पार्ट वन का छात्र हूँ,मैं वीर कुवांर सिंह विश्वविद्यालय,आरा का छात्र हूँ।सर मेरा एडमिशन 2020 का है और मेरा अभी तक पार्ट वन का रिजल्ट नहीं आया है।जब पार्ट का रिजल्ट निकालने में दो साल का समय लग जा रहा है तो बीए पास करते-करते छः साल लग जाएंगे।' पिछले दिनों भी पाटलिपुत्रा यूनिवर्सिटी के छात्र हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरे थे लेकिन सरकार के तरफ़ से सिर्फ सांत्वना ही मिला है।


देश के भविष्य बनाने वाले शिक्षक भी कम नहीं हैं।उनका भी एक मामला बापू की कर्मभूमि चंपारण से आया।जहाँ SDO एक विद्यालय में औचक निरीक्षण करने पहुँच गए।पर्यावरण पढ़ा रहे शिक्षक से जलवायु और मौसम में अंतर पूछ लिया।तो मास्टर साहब का मौसम खराब हो गया। हेडमास्टर के कमरे में गए। हेडमास्टर से पूछा, मैं स्कूल जाता हूँ, अंग्रेजी में क्या बोलेंगे अनुवाद करें।तब हेडमास्टर साहब भी जवाब नहीं दे पाए।


यह कटु सत्य है कि सरकारी विद्यालय/महाविद्यालयों में नियमित क्लासेज नहीं हो रही हैं। राज्य के अधिकांशतः उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय व उच्च माध्यमिक विद्यालय शिक्षक विहीन हैं। बावजूद इसके प्रत्येक वर्ष वहाँ से सैकड़ों विद्यार्थी मैट्रिक व इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर रहे हैं। आश्चर्यजनक है कि मध्य विद्यालयों के शिक्षकों के भरोसे उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय चलाए जा रहे हैं।


फिर भी बिहार बोर्ड से पास होने वाले छात्रों की संख्या अन्य बोर्ड के मामले में प्रतिशत अधिक ही रहता है।शिक्षा विभाग भी डुगडुगी पिटती है कि इस साल बिहार बोर्ड से लगभग 80-85% तक पास हुए। यह बात सही भी है कि बिना अध्यापक और बिना अध्यापन के यदि रिजल्ट रेकॉर्ड तोड़  रहता हो तो फिर शिक्षक बहाली की क्या आवश्यकता है?

परीक्षा पास कराने वाले शॉर्टकट से शिक्षा को बेहतर नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में हमारे बच्चे टिक नहीं पाएंगे। विश्व बैंक की 2015 की रिपोर्ट बताती है कि गणित व विज्ञान में हमारे विद्यार्थी कमजोर हैं।


दरअसल बिहार में जो शिक्षक हैं भी तो उनके पास पढ़ाने के लिए समय भी नहीं है। क्योंकि शिक्षकों के पास पढ़ाने के साथ-साथ कई काम हैं।जनगणना करना, जाति गणना करना तो मध्याह्न भोजन बनवाना।ऐसे कई सारे काम में भी उलझ जाते हैं।


राज्य में शिक्षकों के लगभग 2.5 लाख पद खाली हैं। कक्षा 6 से 8 तक के विद्यालयों में शिक्षकों की सबसे अधिक कमी है। राज्य में कोई ऐसा विद्यालय नहीं है, जहां एक साथ सभी विषयों के शिक्षक मौजूद हों। राजधानी पटना के साथ राज्य के लगभग सभी विद्यालयों का हाल ऐसा ही है। टीचरों की कमी से बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा नहीं मिल रही है।


एक ओर जहाँ शिक्षकों की घोर कमी है वहीं शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी, एसटीईटी) उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की एक बड़ी संख्या सड़कों पर बेरोजगार घुम रही है और लगातार संघर्ष करते हुए पुलिस की लाठियां खा रही है।तो वहीं सरकार रिजल्ट दिखा रही है।


सरकार की दावा की पोल तब खुलती है जब एक सर्वे में बताया गया कि 10% स्कूलों के पास भवन नहीं हैं। 50% में चहारदीवारी नहीं है। 30 % के पास खेल के मैदान हैं। 10 फीसदी के करीब स्कूलों में लड़के या लड़कियों के लिए अलग शौचालय का अभाव है।और जहाँ भवन हैं भी तो वो सिर्फ दिखाने के लिए ही है।क्योंकि भवन कब ध्वस्त हो जायेगा यह कोई नहीं जानता।


सरकार दावा करती है कि शिक्षा के क्षेत्रों में काफी विकास हुआ है लेकिन यह नहीं बताती है कि सरकारी स्कूलों में सभी सुविधाओं के बाद भी बच्चे टिक क्यों नहीं पा रहे हैं? अधिकांश बीच में ही पढ़ाई छोड़ दे रहे।


गुणवतापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षा विभाग, गांव के शिक्षित लोग, संकुल संसाधन केंद्र आदि को पूरी सक्रियता से मिशन की ओर लगना पड़ेगा, तब बदलेगी शिक्षा व्यवस्था तब बिहार देश के अग्रिणी राज्यों में होगा शामिल।


अरुणेश कुमार Arunesh Kumar ✍️

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