शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

सरकारें मर चुकी है।

 "उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्य चुनाव आयोग और बेसिक शिक्षा मंत्री को लिखे पत्र में बताया है कि पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमित हुए 706 प्राथमिक शिक्षकों और बेसिक शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की जान गई है. संघ ने मतगणना टालने की मांग की है."

        हे भगवान!क्या हो रहा है इस देश में?अब तो सरकार नाम से ही घिन आती है।जनता के वोट से पालने वाली सरकार इतना मक्कार हो सकती है।एक के बाद एक मौत होती जा रही है लेकिन सरकार को सिर्फ चुनाव से मतलब है।चाहे वो चुनाव लाशों के ढ़ेर पर ही क्यों न हो?लानत है ऐसी सरकार और मतलबफरोस नेतागण जो चुनाव केलिए इस देश को श्मशान बना दिया है।क्या जरूरी है चुनाव कराना?क्या जरूरी है मतगणना करना? जब पता है कि सैकड़ो मतदानकर्मियों की मौत हो चुकी है।लेकिन फिर भी ये सरकार सोयी हुई है।अब भी समय है प्रधानसेवक जी यूपी (पंचायत चुनाव) समेत पांच राज्यों के मतगणना को रोक दीजिए।नहीं तो आगे क्या होगा? अब  भगवान ही मालिक हैं।

अगर अब भी सरकार चुप रहती है और मतगणना कराई जाती है तो हमें यह समझ लेना होगा कि सरकारों को आपके जान से कोई लेना देना नहीं है।आप सरकार के लिए सिर्फ संख्या मात्र हैं।इनको लाशों के ढ़ेर में चुनाव लड़ने में कई दिक्कत नहीं है।

आपको याद होगा हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग ने रैली क्यों नहीं रोकी? कोर्ट ने चुनाव आयोग को गैर-जिम्मेदार संस्था भी कहा था एवं इसके अधिकारियों पर हत्या का मामला चलाना चाहिए।लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह मामला चलायेगा कौन? क्योंकि इसके पीछे तो सरकार ही खड़ी है।



Arunesh Kumar

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

आप प्रधानमंत्री हैं प्रचारमंत्री नहीं

 हे महाराज! चुनाव आप अपने देश में लड़ते हो तो यहीं लड़ो न।क्यों दूसरे देश में जाकर प्रचार करते हैं? इससे बनी बनाई रिश्ते खराब होते हैं।लीजिए बाइडेन ने भी कह दिया कि अब हम भारत को वैक्सीन बनाने वाले कच्चे माल नहीं देंगे।आपको तो सिर्फ चमचागिरी करना था।अबकी बार ट्रम्प सरकार-अबकी बार ट्रम्प सरकार।तो कीजिए एक के बाद एक रैली।इसलिए कहते हैं लुबुर-लुबुर करने से छवि ही खराब होती है।लेकिन ये बात आपको तोसमझ आएगी भी नहीं।

पिछले साल आप ट्रम्प को हाइड्रोऑक्सीड भेज रहे थे।दे- दना- दन भेजते जा रहे थे।लेकिन अंत में क्या हुआ कूटनीति सब धरे-के-धरे रह गया।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

ऐसे में जनता क्या करें?

 हमें लगता है भारतीय नेताओं जैसी घोषणा दुनिया के किसी देश के नेता नहीं करते होंगे।घोषणा करके लोगों का ध्यान भटकाना कोई भारतीय नेताओं से सीखें।इस समय, जब देश को सबसे ज्यादा जरूरत अस्पतालों में ऑक्सीजन, बेड, दवाई ,डॉक्टर्स एवं अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की है, तब हमारे देश के नेतागण इस पर ठोस बात न करके एक मई से अठारह (18) वर्ष के ऊपर सभी लोगों को टीका लगाने की घोषणा कर रहें। भला यह कैसे होगा? इसका अभी तक कोई खाका तैयार नहीं किया गया। अमेरिका जैसे देश की आबादी हमारे देश की चौथाई भर है इसके बावजूद भी वहां टीके बनाने वाले कई कम्पनियां हैं।उसने अब जाकर सभी युवाओं को टीका देने की शुरुआत की है।मगर अपने यहां तो सिर्फ दो ही कम्पनियां है,जो सीमित मात्रा में टीके का उत्पादन कर रही है।हालांकि कुछ टीके का आयात करने का फैसला भी किया गया है लेकिन यह कब तक सम्भव होगा, पता नहीं।ऐसे में यह सवाल बड़ा गंभीर है कि  जब हम 45 साल के ऊपर वाले सभी लोगों को टीका नहीं दे पा रहे हैं, तो लगभग 70 करोड़ नई आबादी केलिए कहां से टीका आएगा? ऐसे तो पूरे देश में अफरा-तफरी मच जायेगी।

दूसरी स्थिति यह है कि जिन वरिष्ठ नागरिकों के टीके की दूसरी खुराक  नहीं मिल पा रही है,जिनके टीकाकरण का वक्त आगया है।समस्या यह हो चुकी है कि अस्पतालों में न टीके उपलब्ध हैं न इसकी आस-पास कोई व्यवस्था हो पा रही है।हालात तो ऐसे हो गए हैं कि बुजुर्ग लोग अस्पताल जा रहे हैं लेकिन टीका उपलब्ध न होने के कारण लौटकर  आ जा रहे हैं। ऐसे में बुजुर्ग क्या करें? कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए हर अस्पताल के चक्कर भी नहीं लगाए जा सकते हैं।यानी कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहें हैं।लेकिन सरकार टीकाकरण अभियान का उचित प्रबंधन नहीं कर पा रही है।जहां भी कमियां सामने आ रही है,वहां हमारी सरकार को पूरी मुस्तैदी से काम करना चाहिए।लेकिन आलम यह है कि आज देश में कोरोना से कम लेकिन सरकार की व्यवस्था के कारण ज्यादा लोग मर रहें।



अरुणेश कुमार,

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था

 कोरोना वायरस लगातार बढ़ रहा है. बढ़ता कोरोना एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल रहा है. बिहार की राजधानी पटना में इलाज न मिलने से कई मरीजों की मौत हुई है. राजधानी पटना के सबसे बड़े दूसरे अस्पताल NMCH में कोरोना संक्रमित मरीजों की हो रही लगातार मौत से पीड़ित परिजनों में खासा आक्रोश है. पटना में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच NMCH अस्पताल में सभी बेड भर गए हैं. अस्पताल के बाहर एम्बुलेंस में पड़े मरीज की मौत होने से परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है.

 

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था हो या शिक्षा व्यवस्था आए दिन सवालों  के घेरे में रहता है।हैरानी तो तब हुई जब NMCH के सुपरिटेंडेंट ने सरकारी व्यवस्था के कारण इस्तीफे की पेशकश कर दी।कारण यह था कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी होई गई थी।सुपरिटेंडेंट के सभी प्रयास विफल हो रहे थे,अंत में इस्तीफे की पेशकश कर दी।

अफवाहों से बचे

 जब से कोरोना का कहर भारत मे शुरू हुआ है,तब से संक्रमण तो फैला ही है,पर उससे कहीं ज्यादा अफवाहें फैली है।कई तरह की बात सोशल मीडिया पर की जा रही है।खानपान से लेकर इलाज संबंधी जानकारियां लोगों द्वारा शेयर की जा रही है , अब इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता।अब एक बात तो स्पष्ट हो चुकी की जैसे जैसे कोरोना का संक्रमण बढ़ते जा रहा है वैसे वैसे झोला छाप डॉक्टरों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।अब एक उदाहरण मास्क का ही ले लीजिए। चुनावी रैलियों में तमाम तस्वीरें दिखाकर मज़ाज बनाया जा रहा है।लोग तो यह कहने लगे हैं कि जहां चुनाव है वहां कोरोना नहीं है।वैसे लोगों को समझना चाहिए कि राजनीतिक दल तो अपनी अपनी सियासी रोटियां सेंककर निकल जाएंगे,लेकिन बाद में झेलना तो जनता को ही है।इसलिए अपनी सुरक्षा का ख़्याल रखना प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है।हमें ऐसी अफवाहें पर ध्यान न देते हुए कोरोना से बचाव के उपाय करने चाहिए।

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

नैना : संजीव पालीवाल

 किताब : नैना -'एक मशहूर न्यूज एंकर की हत्या'

लेखक : संजीव पालीवाल

प्रकाशक : एका (वैस्टलैंड)

पृष्ठ : 272


'नैना' मर्डर मिस्ट्री पर आधारित लेखक और साहित्यकार संजीव पालीवाल की पहली उपन्यास है।इस किताब की कहानी नेशनल चैंनल के न्यूज़ एंकर के जीवन पर आधारित है।जिसका नाम नैना वशिष्ठ है।नैना एक खुशमिजाज लड़की है जिसको  अपने जीवन में करियर को लेकर  खुद को केंद्रित रहना ज्यादा पसंद है।नैना अपने जीवन में ऊंचाईयों पर जाने की चाह रखती है।उसकी हर वो सपना साकार होता है जो वो करना चाहती है। उसकी ज़िन्दगी में रुतबा, पैसा सब कुछ है। लेकिन एक रोज़ उसका कत़्ल हो जाता है। शक नैना के पति समेत दो लोग पर जाता है।लेकिन क़त्ल कौन करता है? ये तो किताब पढ़ने के बाद ही पता चलेगा। इस किताब में सबसे मजेदार तब लगती है जब नैना की मौत एक दिन पहले हो जाती है।लेकिन जब कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है सस्पेंस बढ़ते जाता है।  


लेखक ने बताने की कोशिश की है टीवी के चकाचौंध के पीछे की हकीकत कैसी होती है? कैसे ज़िन्दगी दौड़ती है, जिसमें आप इतनी तेज़ होते हैं कि वक्त पीछे छूटता सा लगता है। टीवी न्यूज़ चैनलों की दुनिया में क्या घटता है, कोई घुटता है, कैसे होता है वो सब जो हम बाहर से नहीं जान पाते, और किस तरह वो उसे महसूस करते हैं जो उस शोहरत भरी ज़िन्दगी को जी रहे हैं।

इस कहानी के जरिए टीवी की चकाचौंध की सच्चाई जाने पढ़कर चौंक सकते हैं।यह किताब में आजकल के समाज के रिश्तों को भी बयाँ करती है।

कुल मिलाकर इस किताब की कहानी रोचक और रहस्यमयी है।किताब की भाषा सरल और साधारण होने के कारण पाठक को अंत अंत बांधे रहता है।

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

इंडियन एक्सप्रेस की यह रिपोर्ट बेरोजगारी केलिए चिंता का विषय

 

कोरोना महामारी के बीच अनियोजित तरीके से लागू किए गए लॉकडाउन के चलते करोड़ों की संख्या में दिहाड़ी मजदूर अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर हुए थे. ऐसे में ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा उनकी आजीविका का एकमात्र जरिया बना.
साल 2006-07 में मनरेगा की शुरूआत के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि इस योजना के तहत किसी एक वित्तीय वर्ष (2020-21) में 11 करोड़ से अधिक लोगों ने कार्य किया है. यह रिपोर्ट दिखाता है कि लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी कितना चिंता जनक है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एक अप्रैल तक के आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में 11.17 करोड़ लोगों ने कार्य किया, जो 2019-20 में कार्य किए 7.88 करोड़ लोगों की तुलना में 41.75 फीसदी अधिक है.

उपलब्ध आंकड़े दर्शाते हैं कि इससे पहले 2013-14 से 2019-20 के बीच 6.21 करोड़ से 7.88 करोड़ लोगों ने मनरेगा के तहत रोजगार प्राप्त किया था.

वहीं यदि परिवारों के आंकड़ों को देखें तो वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान सबसे ज्यादा 7.54 करोड़ परिवारों ने मनरेगा में काम किया. यह 2019-20 में काम किए 5.48 करोड़ परिवारों की तुलना में 37.59 फीसदी अधिक है. इससे पहले सबसे ज्यादा परिवारों द्वारा मनरेगा में काम करने का रिकॉर्ड वर्ष 2010-11 का था, जब 5.5 करोड़ परिवारों ने काम किया था.

इसके साथ ही 2020-21 में सबसे ज्यादा 68.58 लाख परिवारों ने मनरेगा में 100 दिन के लिए काम किया, जो कि इससे पहले 2019-20 में 40.60 लाख परिवारों द्वारा पूरा किए गए 100 दिन के कार्य की तुलना में 68.91 फीसदी अधिक है.

कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2020-21 में प्रति परिवार ने औसतन 51.51 दिन काम किया, जो कि इससे पहले 2019-20 में 48.4 दिन की तुलना में थोड़ा अधिक है.

याद हो कि कोरोना वायरस के चलते उत्पन्न हुए अप्रत्याशित संकट के समाधान के लिए मोदी सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत योजना’ के तहत मनरेगा योजना के बजट में 40,000 करोड़ रुपये की वृद्धि की थी.

इस तरह पूर्व में निर्धारित 61,500 करोड़ रुपये को मिलाकर मौजूदा वित्त वर्ष 2020-21 के लिए मनरेगा योजना का बढ़कर 1.01 लाख करोड़ रुपये हो गया. किसी वित्त वर्ष के लिए यह अब तक का सर्वाधिक मनरेगा बजट था.