रविवार, 28 फ़रवरी 2021

चुनाव यात्रा

 नेताओं को अपनी भागीदारी को समझना बहुत जरूरी होता है।लेकिन ये नेता लोग खुद को कभी भी उस लायक नहीं बना सकते हैं ताकि गरीब लोग उनको एक मसीहा के तौर पर देखें।अगर कुछ करते भी हैं तो सिर्फ चुनाव लड़ने केलिए किस व्यक्ति से किस प्रकार से वोट लेना या फिर वोट खरीदना है? ये तरीका बखूबी निभाते हैं।

लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुना गया व्यक्ति ही प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाए तो बड़ा हास्यास्पद लगता है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में ,जब मैं अपने गांव के  चौक-चौराहे पर घूम रहा था,उस वक्त लोगों से ओपिनियन लेने की कोशिश करता था।कभी कोई मिल गया तो बात कर लेते थे,जैसे कभी कोई कंडीडेट ही मिल गया तब चुनाव संबंधी बात हो जाती थी।सच तो ये भी है कि चुनाव के समय में पूरे देश में कोरोना अपने चरम पर था।ऐसे में बाहर निकलने में रिस्क़ तो था ही। खैर, तो मैं ऐसे ही एक मित्र के किराना दुकान पर बैठा हुआ था।तब ही एक बुजुर्ग औरत आयी,उम्र तकरीबन साठ-सत्तर के आसपास होगा।दुकानदार से सत्तु खरीद रही थी।समय तकरीबन दिन के एक बजे रहे थे।उसी समय चुनाव  प्रचार में निकले भाजपा की गाड़ी आगई। बुजुर्ग महिला गाड़ी को देखते ही बोलने लगी 'नेता सब खाली वोट लेवेला आवेला केहू ग़रीब के कुछ ना देवेला।आज हम दो दिन से भूखे बानी लेकिन केहू नेता हमरा से हाल चाल भी ना पूछे ला।गरीब के केहू करेवाला नइखे।अब आओ ना लोग तब बिना पैसा लेके ना देम।' मुझे बड़ा आश्चर्य लगा कि एक बुजुर्ग महिला वोट पैसे से देने की बात कर रही थी।फिर हमने पूछना शुरु किया। वोट पैसा लेके देम का? महिला का जवाब देते हुए बोली ' एकरा पहिले वोट देनी तब हमरा चापाकल ना मिलल, राशन में नाम कट गइल कोई नेता लोग मदद ना कईल।' अगला सवाल केतना पैसा में वोट देम ? फिर महिला का जवाब था एक हजार।अगला सवाल पूछने ही वाले थे कि महिला अपना समान लेकर चली गई।

कुछ ही देर में एक दूसरी महिला आई और बिना कुछ पूछे ही बोलने लगी 'हम तs वोट मोदी के ही देम'।फिर हमने सोचा कुछ पूछते हैं तब तक वो खुद बोलने लगी 'केहू के नमक खा के नमकखरामी ना करे के।आज हमरा घर मे गेहूँ-चावल ,तेल,बिजली, पानी सब मोदिया ही देले बा.हमनी का वोट ओकरे के देम'. फिर हमने पूछा 'अरे मोदी जी इहा थोड़े खड़ा बारनs'? महिला का बोलने लगी कि 'केहू होखो लेकिन वोट हम फूल छाप के ही देम'. दरअसल बिहार में चुनावी माहौल में जहाँ भी जाइए चौक-चैराहे हर जगह चुनाव पर चर्चा होना तो लाज़मी है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें