सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

डायरी -3

 प्यार हमारा अमर रहेगा याद करेगा जहान

तु मुमताज हैं मेरे ख्वाबो की मै तेरा शाहेजहा


ये गीत जब भी सुनता हूँ।सबसे पहले तुम्हारा ही ख्याल आता है।आज भी मैं तुम्हारी  ही आवाज में सुनना पसंद करता हूँ।अरे आज कल  तो पहले से ज्यादा सुनने लगा हूँ।

पता नहीं मुझे , तुम्हें याद है या ये भी भूल गई।पर मैं तो चाह कर भी नहीं भूल सकता हूँ।

चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते, खाते-पीते हर वक्त याद आती रहती  हो।तुम में क्या बात है, वो मैं भी नहीं जानता, लेकिन तुम  में कुछ न कुछ तो जरूर है।इसलिए तो चाह कर भी नहीं भूल पाता हूँ।

मानता हूं अब सिर्फ औपचारिकता ही रह गया है।अब पहले जैसा कुछ नहीं पर मैंने हर वो पल को बचा रखी है जो कभी हमने महसूस किए थे।

जब तक हम एक थे तब तक बिना एक दूसरे का हाल जाने बगैर चैन से न रह पाते थे।पर अब तो ऐसा कुछ न होता है।नाराजगी तो उस वक्त भी होती थी पर रूठना मनाना तो अहम हिस्सा था।

सच पूछो तो मैंने कभी सोचा नहीं था कि इतनी छोटी वक्त के लिये आओगी।

सच में ये उम्मीद भी कितनी अजीब है नlसब जानते हुए भी एक उम्मीद बची है कि सब कुछ पहले जैसा हो जाने की उम्मीद।घण्टों बात करने की उम्मीद,फिर से वही फ़ोन कॉल की उम्मीद।उम्मीद है लौट आने की।पर ये उम्मीद तो हर रोज टूटी है फिर पता न ये उम्मीद होती क्यों है?


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