एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए एक मज़बूत सरकार के सामने एक मजबूत विपक्ष का होना ज़रूरी समझा जाता है. विपक्ष सरकार के कार्यों और नीतियों पर सवाल उठाता है और उसे निरंकुश होने से रोकता है.
संसद में अगर विपक्ष कमज़ोर होता है तो मनमाने तरीके से सत्ता पक्ष कानून बना सकता है और सदन में किसी मुद्दे पर अच्छी बहस मज़बूत विपक्ष के बिना संभव नहीं है.लेकिन मौजूदा वक्त में वही विपक्ष अगर सवाल करता है तो बड़ा हास्यास्पद लगता है।क्या आप के पास कोई आकड़ा है कि किसान आंदोलन में अभी तक कितने किसानों ने खुदख़ुशी की है?तब सरकार का जवाब आता है नहीं हमारे पास कोई आकड़ा नहीं है।यहां तक मौजूदा वक्त में विपक्ष के साथ कैसा बर्ताव किया जा रहा है चाहे वो सकारात्मक सवाल क्यों न उठा रहा हो लेकिन सत्ता पक्ष जवाब देने के बजाए नकारात्मक साबित करने केलिए एक अलग माहौल चला देती है।
दरअसल बीते अस्सी दिनों से चल रहे आंदोलन में लगभग दो सौ से अधिक किसानों की जाने जा चुकी है।लेकिन सरकार के पास कोई आकड़ा नहीं है।यह आंदोलन एक बड़ा सवाल खड़ा कर रही है।अगर किसान बिल किसानों के हित में है तो क्यों आज तक मोदी सरकार किसानों को समझाने में नाकाम रही है?
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