अक्टूबर जंक्शन दिव्य प्रकाश दुबे की एक ऐसी किताब है। जिसकी कहानी दिल और दिमाग में चढ़ते जाता है।
कहानी बनारस से शुरू होती है जहाँ चित्रा और सुदीप धोखे से एक-दूसरे से मिलते हैं और दुनिया की एक खूबसूरत प्रेम कहानी बनती चली जाती है। चित्रा और सुदीप की यह कहानी हर किसी के पढ़ने लायक है।
किताब की कुछ पंक्तियां जो दिल छू लेती हैं :-
एक अधूरी उम्मीद ही तो है जिसके सहारे हम बूढ़े होकर भी बूढ़े नहीं होते। किसी बूढ़े आशिक़ ने मरने से ठीक पहले कहा था कि एक छंटांक भर उम्मीद पर साली इतनी बड़ी दुनिया टिक सकती है तो मरने के बाद दूसरी दुनिया में उसकी उम्मीद बांधकर तो मर ही सकता हूँ। बूढों की उम्मीद भरी बातों को सुनना चाहिए।
किसी के साथ बैठकर चुप हो जाना और इस दुनिया को रत्ती भर भी बदलने की कोई भी कोशिश न करना ही तो प्यार है!
हर आदमी में एक औरत और हर औरत में एक आदमी होता है। हर आदमी अपने अंदर की अधूरी औरत को जिंदगी भर बाहर ढूँढता रहता है लेकिन वो औरत बड़ी मुश्किल से मिलती है। वैसे ही हर औरत अपने अंदर का अधूरा आदमी ढूँढती रहती है लेकिन वो अधूरा आदमी बड़ी मुश्किल से मिलता है। और कई बार वो अधूरा मिलता ही नहीं। लेकिन अगर एक बार अधूरा हिस्सा मिल जाए तो आदमी मरकर भी नहीं खोता। तू ध्यान से देख वो कहीं नहीं गया तेरे अंदर है। आधी तू आधा वो।
नदी और जिंदगी दोनों बहती हैं और दोनों ही धीरे-धीरे सूखती रहती हैं।
किताबः अक्टूबर जंक्शन
लेखकः दिव्य प्रकाश दुबे
पृष्ठः 150
मूल्यः 125 रुपए
प्रकाशकः हिंद युग्म
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