मंगलवार, 16 मार्च 2021

कांग्रेस को आत्मविश्लेषण की जरूरत

 कांग्रेस पार्टी केलिए चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनाव कितने महत्वपूर्ण हैं ये बताने की जरूरत नहीं है।इस समय कांग्रेस की स्थिति क्या हो चुकी है ये भी बताने की जरूरत नहीं है।जाहिर सी बात है कि कांग्रेस की दशा देखकर कट्टर समर्थक भी हताश हो रहे होंगे।दरअसल कांग्रेस की स्थिति इतनी खराब होने के पीछे भी कांग्रेस नेताओं का हाथ है।आपने देखा होगा राहुल गांधी  सिर्फ केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में प्रचार करते दिख रहे हैं। वही प्रियंका गांधी असम में दिख रही है।इसका मतलब क्या है? वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिर्फ सोशल मीडिया पर अपने उलूल-जलूल बयान देते नजर आ रहें हैं।दरअसल जिस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को जी जान लगाकर चुनावी अभियान लगाना चाहिए था,तब ये लोग अपने ही पार्टी के खिलाफ अजीबोगरीब बयान देकर फंसते नजर आते हैं।चाहे वो राहुल गांधी का बयान हो या किसी अन्य वरिष्ठ नेताओं का,हमेशा से सवालों के घेरे में ही रहता है। विडंबना तो यह है कि अगर कोई नेता पार्टी के हित में सच्चाई दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ अन्य सदस्य पार्टी से बाहर निकालने केलिए एक अलग मोर्चा खड़ा कर देते हैं।हाल ही में गुलाब नबी आजाद के साथ क्या हो रहा है ये बताने की जरूरत नहीं है। दरअसल यह परिदृश्य सिर्फ कांग्रेस पार्टी की ही नहीं है अन्य पार्टीयों में भी ऐसा होते रहा है।आजकल तो सरकार के नीतियों के खिलाफ कुछ बोलने की कोशिश करते हैं तो उनके समर्थक देशद्रोही घोषित करने लगते हैं।दरअसल यही सच्चाई है।

जिस  समय कांग्रेस को नरेंद्र मोदी और अमित शाह  के खिलाफ मोर्चा संभालना चाहिए था उस समय पार्टी अपने ही नेताओं के बयान से उलझे हुए है।हाल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने पार्टी के हित में बंगाल के पीरज़ादा अब्बास सिद्धिकी के साथ होने वाले  गठबंधन का विरोध किया तो कांग्रेस पार्टी के दूसरे नेता अधीर रंजन चौधरी उनका किस तरह से माजक बनाया यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
ध्यान देने की बात है जब कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के संगठन मजबूत करने केलिए और स्थाई अध्यक्ष केलिए जो पत्र लिखा गया था उसमें भी वही नेता थे जो पार्टी के हित चाहते थे।हालांकि उनके पत्र पर कोई विचार तक नहीं किया गया।दरअसल होना यह चाहिए था कि पार्टी के अध्यक्ष एक बैठक बुलाते सर्वसम्मति से पार्टी के हित मे चर्चा की जाती,विचार विमर्श होती।लेकिन ऐसा हुआ नहीं।अगर ऐसा हुआ रहता तो ऐसी नौबत ही नहीं आती।आज कांग्रेस इस स्थिति हो चुकी है भाजपा के खिलाफ खड़ा होने में भी सोचना पड़ता है।इसका नतीजा पिछले चुनावों के आंकड़ों से देखा जा सकता है।
     कांग्रेस की मौजूदा  स्थिति से यही अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर ऐसी हालात रही तो आगामी विधानसभा चुनाव में वही स्थिति रहेगी जो पिछले छः सालों से देखने को मिल रहा है।संयोग से अगर कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा तो पार्टी के चाटूकार लोग गांधी परिवार की चाटूकारिता करते हुए नज़र आएंगे।इससे कांग्रेस का भविष्य क्या होगा देखना बड़ा दिलचस्प होगा?


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