सोमवार, 3 मई 2021

तो क्या प्रधानमंत्री मोदी की हार हुई?

 बंगाल चुनाव के बाद राजनीतिक बुद्धिजीवियों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी हार गए हैं।तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हार गए हैं? दरअसल हकीकत यह है कि एक प्रदेश की महिला मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के पूरी झुंड को बहुत जोरदार पटखनी दी है।ममता बनर्जी ने प्रचंड जीत हासिल की है।पिछ्ली बार से ज्यादा सीटें हासिल की है।बंगाल में कोई मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं था अगर जीत होती तो मोदी जी की होती।यानि बंगाल चुनाव के मुख्य चेहरा मोदी ही थे।अब अगर हार हुई है तो हार सेहरा भी मोदी जी पर ही बांधा जाना चाहिए।अब सवाल यह है कि बंगाल चुनाव में हार का ठिठरा किस पर फूटेगा? मोदी जी हर चुनाव में प्रधानमंत्री पद भूलकर प्रचारमंत्री बन जाते हैं।मुझे लगता है इस बात केलिए उनकी  तारीफ़ भी की जानी चाहिए कि वो अपनी पार्टी के जीत केलिए सबसे ज्यादा मेहनत करने वाले प्रधानमंत्री हैं।मतलब मोदी जी हैं तो भाजपा है।पार्टी के छोटे से छोटे काम भी मोदी जी के ही कंधे पर है।पार्टी में मोदी की छवि ऐसी हो गई है कि अब मोदी जी को मुख्यमंत्री बनाने की मशीन कहे जाने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए।मोदी जी जहाँ जाते हैं उधर से जीत हासिल करके ही आते हैं लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी ने मोदी जी का जीत अभियान रोक दिया है।यह कहने में भी गुरेज नहीं होगा कि बंगाल चुनाव परिणाम के बाद मोदी जी के व्यक्तिगत छवि का नुकसान हुआ है। अब तक पार्टी एवं कार्यकत्ताओं केलिए मोदी जी किसी फरिश्ते से कम नहीं थे।लेकिन अब  देशवासियों के नजर से उतरते जा रहें हैं। इसके कई कारण हैं मेरे नजर में पहला कारण किसान आंदोलन।क्योंकि याद होगा किसान आंदोलन को भाजपा ने आतंकियों अड्डा बताया था।इसके बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी।दूसरा कारण कोरोना जैसे आपदा के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने बंगाल चुनाव केलिए  जिस तरह से अपने कर्तव्य, अपनी जिम्मेदारियों को भुला।उससे देशवासियों के नजर में और गिर गए हैं।लोगों में यह संदेश साफ तौर पर पहुंचा है कि आये दिन लोग   हजारों की संख्या में मरते जा रहे थे लेकिन मोदी चुनाव में व्यस्त थे।एक के बाद एक तारातरा रैली करते जा रहे थे।लाखों की संख्या में उनकी रैलियों में लोग पहुँच रहे थे।वो भी बिना मास्क और बिना किसी सोशल डिस्टेंस के।जो खुद कहते हैं कि जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं।दो गज-दूरी मास्क है जरूरी।जो खुद कहते हैं कि घर में रह कर ही कोरोना को हराया जा सकता है।लेकिन उन्होंने अपनी कही बात को एक बार फिर जुमला साबित कर दिया है।यह बात कहने में कही से संकोच नहीं कि जानी चाहिए देश के प्रधानमंत्री ने अपनी ही फायदे केलिए अपने ही देशवासियों को कोरोना के मुँह में झोंक दिया।लाशों की जाल बिछा दीं।इस कोरोना महामारी में जिन लोगों ने अपनों को खोया है।जिनको अस्पताल में जगह नहीं मिली।जिन्होंने ऑक्सीजन के बिना अपना प्राण त्याग दिया।जिनलोगों को दवाई नहीं मिली।जिनलोगों को शमशान में दो-दो-तीन-तीन दिन लाईन में लगानी पड़ रही थी।जिन लोगों को शमशान में लकड़ियां नहीं मिली।वो लोग तो प्रधानमंत्री की चुपड़ी - चुपड़ी बातों से मनने वाले तो नहीं हैं।

लोग अब तक प्रधानमंत्री की हर बात मानते आए हैं चाहें वो नोटबन्दी हो ,ताली-थाली बजाना हो,दिया जलाना हो,पूरे देश में ताला बंदी करनी की बात हो।

मेरा मानना है बंगाल में केवल भाजपा की हार नहीं हुई है।बल्कि देश के अभिभावक,बड़े बुजुर्ग घर के सदस्य के तौर पर इनकी छवि धूमिल हुई है।चाहे वो टैगोर वाली छवि ही क्यों न हो। स्वघोषित प्रधानसेवक की छवि भी धूमिल हुई है।



2 टिप्‍पणियां: