बुधवार, 13 जनवरी 2021

युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद

 

स्वामी विवेकानंद जी की जन्मतिथि को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में हमारे देश में मनाया जाता है। वो युवाओं के लिए सच्चे आदर्श हैं। वे कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहे हैं और आगे भी रहेंगे। 1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद जयंती पर इसे मनाने की घोषणा की थी। प्रेरणा के अपार स्रोत रहे और आज भी युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद की कही एक-एक बात ऊर्जा से भर देती है। अपने छोटे से जीवन में ही उन्होंने पूरे दुनिया पर भारत और हिंदुत्व की गहरी छाप छोड़ी। शिकागो में दिया गया भाषण आज भी गर्व से भर देता है। विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था. उन्होंने शिकागो में अपने भाषण से सभी आश्चर्यचकित किया था. इसके बाद अमेरिका और यूरोप में भारतीय वेदांत दर्शन के प्रति दिलचस्पी जगने लगी थी.
शिकागो सम्मेलन में उन्हें 02 मिनट का ही समय दिया गया था लेकिन जब उन्होंने भाषण की शुरुआत "मेरे अमेरिकी बहनों एवं भाइयों" से की, तो इस संबोधन ने सबका दिल जीत लिया. इसके बाद उनके संबोधन के दौरान ना केवल खूब तालियां बजीं बल्कि उनकी बातों को बहुत ध्यान से सुना गया.इनके विचार आज भी जोश भर देता है।



'उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।'

'उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।'

'जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता  है।'

12 जनवरी, 1863 एक बंगाली परिवार में उनका जन्म हुआ, नाम रखा गया नरेंद्रनाथ दत्ता। वो अपनी माँ की सात संतानों में से एक थे। बचपन से ही, नरेंद्रनाथ बहुत ही तीव्र बुद्धि के धनी थे, पढ़ाई लिखाई में हमेशा अच्छे थे। अपने शुरूआती जीवन में वो अंग्रेज़ी भाषा पढने लिखने से परहेज़ करते थे, ऐसा इसलिए क्यूंकि उनको लगता था कि अंग्रेज़ी ब्रिटिश वासियों की भाषा है। लेकिन बाद में  उनको यह भाषा सीखनी पड़ी क्यूंकि यह उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा थी। वो अन्य दुसरे विषय जैसे खेलकूद, संगीत,  कुश्ती इत्यादि में भी काफ़ी आनंद लिया करते थे।उन्होंने कलकत्ता के एक कॉलेज से दार्शनिक शास्त्र में स्नात्कोत्तर कि उपाधि प्राप्त की, उसके बाद आगे चलकर वो दार्शनिक शास्त्र के बड़े शास्त्री बने। उनकी शिक्षा का धर्म, श्रद्धा, विद्या, अध्यात्म और मानवतावाद पर अधिक ज़ोर होता था। वो अपने गुरु, रामकृष्ण परमहंसजी के ज्ञान को आगे फ़ैलाने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़े।आगे चलकर, नरेंद्रनाथ स्वामी विवेकानंद के नाम से पहचाने जाने लगे। उनके बहुत के कामों के अलावा ब्रम्हो समाज और रामकृष्ण मिशन के सामाजिक कार्यों को लेकर, विभिन्न धर्मों में मैत्री भाव, दुःख और दरिद्रता को दूर करना ही उनके जीवन का लक्ष्य था

स्वामी विवेकानंद का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार रहना होगा, विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करते हैं।

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