सोमवार, 8 अगस्त 2022

बचपन सीरिज :1

 

कभी कभी दिन के सन्नाटे पुराने लम्हों की याद दिलाते हैं।मुझे याद है बचपन में मुझे टीवी देखने का बड़ा शौख था।उस समय गांवों में जिनके घर ब्लॉक & वाइट टीवी भी होता तो खुद को अमीर समझता था।आप पास में चर्चा भी होती थी अरे उनके टीवी है।  उस समय केबल का जमाना भी नहीं था वहीं  DD1,Metro और एक कोई नेपाली चैंनल पकड़ता था। उसे ही देखने के लिए काफी भीड़ होती थी। उस वक्त बहुत कम गांवों में बिजली भी पहुँची थी।बिजली का पोल और ट्रांफॉर्मेर तो था लेकिन लाइट तो आती नहीं थी।लाइट आती भी थी तो कभी दो-तीन दिन पर तो कभी महीनों दिन पर।
बहरहाल, टीवी देखना पसंद तो था लेकिन अपने घर टीवी थी नहीं।तो हम अपने घर के आसपास टीवी देखने जाया करते थे। घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी थी नहीं कि टीवी खरीदा सकें। तो जब भी टीवी देखना होता तो अपने बगल के घर में जाया करते थे। पहले तो खूब मजे से देखें।मजा भी आने लगा।धीरे धीरे स्थिति ऐसी थी कि स्कूल से आओ बस्ता फेंको और टीवी देखने दौड़ जाओ।उस समय हम शक्तिमान और जूनियर जी देखते थे।


बाद में वे लोग टीवी तभी दिखाते थे।जब तक उनके घर का सारा काम न कर दूं।कभी पानी पिलाओ तो कभी बाहर से कोई सामान खरीद कर लाओ।यहां तो टीवी देखना था उसके खुशी में कोई कुछ भी कराए चाहे वो शोषण ही क्यों न हो।क्या फर्क पड़ता है? समझ तो रहती नहीं।मतलब तो सिर्फ टीवी देखने से रहता था।


कभी कभी ऐसा भी होता था।लाईट आई और हम टीवी देखने के लिए दौड़ जाते थे।उनके घर जाओ तो टीवी बंद कर देते थे।और हम वापस मुँह लटकाए अपने घर आ जाया करते थे। परिस्थिति ऐसी थी कि अपने घर में भी नहीं बता सकते थे।क्योंकि अगर घर पर बताओ तो यहां भी पिटाई खाओ।क्यों गए थे टीवी देखने।इस तरह के तमाम सवालों से गुजरना पड़ता था।


इसके बाद भी कभी कभी मन करता था कि अब से टीवी देखने नहीं जाएंगे।अपने घर टीवी होगा तो देखेंगे।लेकिन जैसे ही शक्तिमान का प्रोमो शुरू होता।सारा दुःख दर्द को भूलकर दौड़ जाते।कई बार तो ऐसा हुआ जैसे ही दौड़कर गए कि लाइट कट गई।फिर मुँह लटकाए वापस आ जाते या कुछ देर वहीं इंतजार करते रहते थे।
खैर उसके कई सालों बाद हमारे घर भी टीवी आई।जिसकी कहानी फिर कभी।


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